लोकतंत्र क्या है? | What Is Democracy In Hindi

लोकतंत्र क्या है? – नमस्कार दोस्तों कैसे है आप सभी? मैं आशा करता हु की आप सभी अच्छे ही होंगे. तो दोस्तों आज हम लोकतंत्र (Democracy) के बारे में विस्तार से जानेंगे.

आज के इस आर्टिकल में हम लोकतंत्र क्या है (What Is Democracy), Democracy In Hindi, लोकतंत्र की विशेषताएं क्या है, लोकतंत्र के मुख्य सिद्धांत क्या है, लोकतंत्र का इतिहास, लोकतंत्र क्यों जरूरी है, लोकतंत्र के प्रकार (Types Of Democracy), आदि के साथ लोकतंत्र से सम्बंधित और भी बहुत सारी बातो के बारे में जानेंगे.

तो चलिए शुरू करते है…

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लोकतंत्र क्या है? | What Is Democracy In Hindi

लोकतंत्र क्या है? | What Is Democracy In Hindi
लोकतंत्र क्या है? | What Is Democracy In Hindi

Loktantra Kya Hai? – दोस्तों आप ने कभी न कभी लोकतंत्र अर्थात Democracy के बारे में तो सुना ही होगा पर क्या आप को पता है की आखिर लोकतंत्र की परिभाषा क्या है या लोकतंत्र किसे कहते हैं? यदि आप को नहीं पता है तो कोई बात नहीं, चलिए मैं आप को बताता हु की आखिर लोकतंत्र है क्या.

भारत देश दुनिया का सबसे बड़ा लोकतान्त्रिक देश हैं. लोकतंत्र एक प्रणाली है जो लोगो को शासन में हिस्सा देती हैं और लोगो को अपनी आजादी को बरकरार रखने की शक्ति देती हैं. पूरी विश्व में अनेक विचारकों के द्वारा लोकतंत्र को विभिन्न तरीकों से समझाया गया हैं लेकिन वास्तव में लोकतंत्र प्रणाली वही हैं जो लोगो को अपनी बात और विचार रखने का निष्पक्ष अधिकार देती हो.

लोकतंत्र का दूसरा नाम प्रजातंत्र भी हैं. लोकतंत्र शासक करने की एक प्रणाली हैं. जिसमे लोग अपना प्रतिनिधि खुद चुन सकते हैं. और जनता के द्वारा चुने हुए प्रतिनिधि शासन की जिम्मेदारी सँभालते हैं. जनता के प्रतिनिधि जनता के लिए और जनता के हित के लिए शासन करते हैं.

Democracy अर्थात लोकतंत्र दो शब्दों लोक + तंत्र से मिलकर बना हैं. जिसका अर्थ होता हैं लोगो का तंत्र या लोगो का शासन.

लोकतंत्र और स्वतंत्रता दो भिन्न शब्द हैं लेकिन हमेशा इन दोनों शब्दों के मायने एक जैसे निकाले जाते हैं. स्वतंत्रा वह हैं जो आजादी के लम्बे संघर्ष के बाद प्राप्त की जाती हैं और लोकतंत्र उस आजादी को बरकरार रखने का तरीका हैं. वास्तव में लोकतंत्र लोगो को सोचने और विचार करने की आजादी ही हैं.

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लोकतंत्र की परिभाषा क्या हैं? | Loktantra Ki Paribhasha

लोकतंत्र की परिभाषा – “जनता द्वारा, जनता के लिए, जनता का शासन हैं.”

जिसका मतलब बिल्कुल साफ़ हैं लोकतंत्र लोगो के द्वारा चुने गए प्रतिनिधियों के द्वारा जनता के हित में कार्य करने की एक शासन प्रणाली हैं.

समय और परिस्थिति के अनुसार लोकतंत्र की अवधारणा भी बदलती गई. बुद्दी जीवियो ने लोकतंत्र की विभिन्न अवधारना रखी जिसमें से बहुत सारी आज तक क्रियान्वित नहीं हुई. निचे हम लोकतंत्र की मुख्य दो अवधारना पर विस्तार से अध्धयन करने वाले हैं.

लोकतन्त्र के प्रकार | Types Of Democracy In Hindi

लोकतंत्र कितने प्रकार के होते हैं? – लोकतन्त्र की परिभाषा के अनुसार यह “जनता द्वारा, जनता के लिए, जनता का शासन है”। लेकिन अलग-अलग देशकाल और परिस्थितियों में अलग-अलग धारणाओं के प्रयोग से इसकी अवधारणा कुछ जटिल हो गयी है। प्राचीनकाल से ही लोकतन्त्र के सन्दर्भ में कई प्रस्ताव रखे गये हैं, पर इनमें से कई कभी क्रियान्वित नहीं हुए।

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1. प्रतिनिधि लोकतंत्र

प्रतिनिधि लोकतंत्र में जनता सरकारी अधिकारी को सीधे तौर पर चुनती हैं. ये अधिकारी जिले और संसदीय क्षेत्र के अनुसार चुने जाते हैं. यधपि इस प्रक्रिया में प्रतिनिधि लोग या जनता चुनती हैं. लेकिन कार्य करने का तरीका प्रतिनिधि का खुद का होता हैं. जनता निश्चित समय के लिए प्रतिनिधि चुनती हैं. प्रतिनिधि अपनी शक्ति और अधिकार का उपयोग करके संरकारी तंत्र को चलाता हैं.

निश्चित समय के बाद प्रतिनिधि को अपनी जगह छोडनी पड़ती हैं. और फिर से चुनाव प्रक्रिया के द्वारा नए प्रतिनिधि चुने जाते हैं. इस प्रक्रिया की एक खामी यह भी हैं की एक बार प्रतिनिधि चुनने के पश्चात् उनके अधिकारों और शक्तियों का गलत व्याक्तियो के द्वारा इस्तेमाल होने की आशंका रहती हैं.

लेकिन इस प्रक्रिया की एक विशेषता यह भी है की निश्चित समय में प्रतिनिधि बदलने के कारन प्रतिनिधियों को जनता के दबाव में जनता के हित में कार्य करना होता हैं. अन्यथा जनता वापस उस प्रतिनिधि को नहीं चुनती हैं.

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2. प्रत्यक्ष लोकतंत्र

प्रत्यक्ष लोकतंत्र की प्रणाली में जनता ही पत्यक्ष रूप से शासन में हिस्सा लेती हैं. जनता के चुनाव के आधार पर ही फैसले लिए जाते हैं. और जनता के फैसलों के अनुसार कार्य किये जाते हैं. इसमें कोई प्रतिनिधि नहीं होता हैं. लेकिन बड़े राज्यों और देशों में प्रत्यक्ष लोकतंत्र शासन व्यवस्था संभव नहीं हैं. छोटे राष्ट्र और राज्य में ही प्रत्यक्ष लोकतंत्र व्यवस्था संभव हैं.

भारत में लोकतंत्र का प्राचीन इतिहास

भारत में लोकतंत्र का प्राचीन इतिहास
Source: Patrika.com

विश्व के विभिन्न राज्यों में राजतंत्र, श्रेणी तंत्र, अधिनायक तंत्र व लोकतंत्र आदि शासन प्रणालियां प्रचलित रही हैं। ऐतिहासिक दृष्टि से अवलोकन करें तो भारत में लोकतंत्रात्मक शासन प्रणाली का आरंभ पूर्व वैदिक काल से ही हो गया था। प्राचीनकाल में भारत में सुदृढ़ लोकतांत्रिक व्यवस्था विद्यमान थी। इसके साक्ष्य हमें प्राचीन साहित्य, सिक्कों और अभिलेखों से प्राप्त होते हैं। विदेशी यात्रियों एवं विद्वानों के वर्णन में भी इस बात के प्रमाण हैं।

वर्तमान संसद की तरह ही प्राचीन समय में परिषदों का निर्माण किया गया था, जो वर्तमान संसदीय प्रणाली से मिलती-जुलती थी। गणराज्य या संघ की नीतियों का संचालन इन्हीं परिषदों द्वारा होता था। इसके सदस्यों की संख्या विशाल थी। उस समय के सबसे प्रसिद्ध गणराज्य लिच्छवि की केंद्रीय परिषद में 7,707 सदस्य थे वहीं यौधेय की केंद्रीय परिषद के 5,000 सदस्य थे। वर्तमान संसदीय सत्र की तरह ही परिषदों के अधिवेशन नियमित रूप से होते थे।

प्राचीन गणतांत्रिक व्यवस्था में आजकल की तरह ही शासक एवं शासन के अन्य पदाधिकारियों के लिए निर्वाचन प्रणाली थी। योग्यता एवं गुणों के आधार पर इनके चुनाव की प्रक्रिया आज के दौर से थोड़ी भिन्न जरूर थी। सभी नागरिकों को वोट देने का अधिकार नहीं था। ऋग्वेद तथा कौटिल्य साहित्य ने चुनाव पद्धति की पुष्टि की है, परंतु उन्होंने वोट देने के अधिकार पर रोशनी नहीं डाली है।

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लोकतंत्र के मुख्य सिद्धांत क्या है?

लोकतंत्र के मुख्य सिद्धांत निम्नलिखित है:

1. उदारवादी सिद्धान्त  — इस सिद्धांत में स्वतंत्रता,  समानता, धर्म-निरपेक्षता,  समान न्याय और मौलिक अधिकार जैसी बातों पर जोर दिया जाता है।

2. अभिजनवादी सिद्धान्त  — इस सिद्धांत में कुछ विशिष्ट गुणों लैस विशिष्ट लोग बहुसंख्यक जनता का नेतृत्व रखने की योग्यता रखते हैं।

3. बहुलवादी सिद्धान्त  — इस सिद्धांत में को नियम या नीति समाज के विभिन्न समूहों और वर्गों के विचारों के पारस्परिक  आदान-प्रदान और मत से बनाई जाती है, क्योंकि कोई अकेला वर्ग पूर्ण सक्षम नही होता।

4. सहभागिता का सिद्धान्त  — इस सिद्धांत में नेता, दल और जनता के आपसी सहयोग से आगे बढ़ा जाता है। ये सहभागिता चुनाव के समय अधिक होती है। जैसे दल के कार्यकर्ता के रूप में कार्य करना आदि।

5. जनता का लोकतंत्र — इस सिद्धांत के अन्तर्गत सारा नियंत्रण जनता के हाथ में होता है। शासन व्यवस्था से लेकर अन्य सभी कार्यों का निष्पादन जनता द्वारा किया जाता है। इसमें किसी शासक की भूमिका नही होती बल्कि जनता ही शासक होती है। इसमें सबको समान स्तर पर अधिकार प्राप्त होते है।

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लोकतंत्र की विशेषताएं क्या है?

लोकतंत्र की विशेषताएं निम्नलिखित है:

  • व्यस्क मताधिकार
  • जनता की इच्छा सवोचच है।
  • उत्तरदाई सरकार।
  • जनता के द्वारा चुने गए प्रतिनिधि सरकार
  • बहुमत द्वारा निर्णय
  • निष्पक्ष तथा समय बधद चुनाव
  • सरकार के निर्णय में सलाह दबाव तथा जनमन द्वारा जनता का हिस्सा
  • निष्पक्ष न्यायपालिका तथा विधि का शासन
  • विभिन्न राजनीतिक दलों तथा दबाव समूह की उपस्थिति
  • समिति तथा संवैधानिक सरकार
  • जनता के अधिकार तथा स्वतंत्रता की रक्षा सरकार का कर्तव्य होना

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लोकतंत्र के उद्देश्य क्या है?

लोकतंत्र के उद्देश्य निम्नलिखित है:

  • राज्य की संस्थाएं और संरचनाएं, राजनीतिक प्रतियोगिता को बढ़ावा देना, राजनीतिक शक्ति का आधार खुली प्रतियोगिता हो, व्यक्तियों के राजनीतिक अधिकारों को संरक्षण मिले।
  • व्यक्तियों तथा विविध समूहों की व्यवस्था में अर्थपूर्ण भागीदारी।
  • राजनीतिक व्यवस्था के अंतर्गत कानून का शासन, नागरिक स्वतंत्रताएं, नागरिक अधिकार आदि की गारंटी उपलब्ध कराई जाए।
  • नीति-निर्माण संस्थाओं में खुली भर्ती की प्रक्रिया को अपनाना।
  • राजनीतिक सहभागिता के लिए नियमन किया जाए।
  • राजनीतिक सत्ता के लिए प्रतियोगिता को बढ़ावा दिया जाए।

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भारतीय लोकतंत्र के उद्देश्य

भारतीय लोकतंत्र के उद्देश्य
Source: thecsrjournal.in

भारत दुनिया का सबसे बड़ा लोकतांत्रिक देश है। भारत में लोकतंत्र तब आया, जब 26 जनवरी 1950 को भारत का संविधान लागू हुआ। यह संविधान विश्व का सबसे लंबा लिखित संविधान है। संविधान में लोकतंत्र की संपूर्ण व्याख्या की गई है। लोकतंत्र के कुछ मौलिक उद्देश्य एवं विशेषताएं निम्न हैं।

  • जनता की संपूर्ण और सर्वोच्च भागीदारी
  • उत्तरदायी सरकार
  • जनता के अधिकारों एवं स्वतंत्रता की हिफाजत सरकार का कर्तव्य होना
  • सीमित तथा सांविधानिक सरकार
  • भारत को एक लोकतांत्रिक गणराज्य बनाने, सभी नागरिकों को समानता, स्वतंत्रता और न्याय का वादा
  • निष्पक्ष तथा आवधिक चुनाव
  • वयस्क मताधिकार
  • सरकार के निर्णयों में सलाह, दबाव तथा जनमत द्वारा जनता का हिस्सा
  • जनता के द्वारा चुनी हुई प्रतिनिधि सरकार
  • निष्पक्ष न्यायालय
  • कानून का शासन
  • विभिन्न राजनीतिक दलों तथा दबाव समूहों की उपस्थिति
  • सरकार के हाथ में राजनीतिक शक्ति जनता की अमानत के रूप में

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लोकतंत्र क्यों जरूरी है?

  • बहुसंख्यक जनसमुदाय, जो गैर-अभिजनवर्ग का निर्मायक है, में अधिकांश भावशून्य, आलसी और उदासीन होते हैं, इसलिए एक ऐसा अल्पसंख्यक वर्ग का होना आवश्यक है जो नेतृत्व प्रदान करे।
  • अभिजन सिद्धान्त के अनुसार आज के जटिल समाज में कार्यक्षमता के लिए विशेषज्ञता आवश्यक है और विशेषज्ञों की संख्या हमेशा कम ही होती है। अतः राजनैतिक नेतृत्व ऐसे चुनिंदा सक्षम लोगों के हाथ में होना आवश्यक है।
  • लोकतंत्र मात्र एक ऐसी कार्यप्रणाली है जिसके द्वारा छोटे समूहों में से एक जनता के न्युनतकम अतिरिक्त समर्थन से शासन करता हैं अभिजनवादी सिद्धान्त यह भी मानता है कि अभिजन वर्गों- राजनीतिक दलों, नेताओं, बड़े व्यापारी घरानों के कार्यपालकों, स्वैच्छिक संगठनों के नेताओं और यहां तक कि श्रमिक संगठनों के बीच मतैक्य आवश्यक है ताकि लोकतंत्र की आधारभूत कार्यप्रणाली को गैर जिम्मदार नेताओं से बचाया जा सके।
  • सहभागिता सिद्धान्त के समर्थकों के अनुसार लोकतंत्र वास्तविक अर्थ प्रत्येक व्यक्ति की समान सहभागिता है, न कि मात्र सरकार को स्थायी बनाए रखना जैसा कि अभिजनवादी अथवा बहुलवादी सिद्धान्तकार मान लेते हैं। सच्चे लोकतंत्र का निर्माण तभी हो सकता है जब नागरिक राजनीतिक दृष्टि से सक्रिय हों और सामूहिक समस्याओं में निरंतर अभिरूचि लेते रहें। सक्रिय सहभागिता इस लिए आवश्यक है ताकि समाज की प्रमुख संस्थाओं के पर्याप्त विनिमय हों और राजनीतिक दलों में अधिक खुलापन और उत्तरदायित्व के भाव हों।
  • सहभागी लोकतंत्र के सिद्धान्तकारों के अनुसार यदि नीतिगत निर्णय लेने का जिम्मा केवल अभिजन वर्ग तक सीमित रहता है तो उसके लोकतंत्र का वास्तविक स्वरूप बाधित होता है। इसलिए वे इसमें आम आदमी की सहभागिता की वकालत करते हैं। उनका मानना है कि यदि लोकतांत्रिक अधिकार कागज के पन्नों अथवा संविधान के अनुच्छेदों तक ही सीमित रहे तो उन अधिकारों का कोई अर्थ नहीं रह जाता, अतः सामान्य लोगों द्वारा उन अधिकारों का वास्तविक उपभोग किया जाना आवश्यक है।
  • लोकतंत्र राज्य का एक स्वरूप है और वर्ग-विभाजित समाज में सरकार अधिनायकवादी और लोकतांत्रिक दोनों होती है। यह एक वर्ग के लिए लोकतंत्र है तो दूसरे के लिए अधिनायकवाद। बुर्जुआ वर्ग चुंकि अपने हित साधन में पूंजीवादी प्रणाली को नियंत्रित और संचालित करता है, इसलिए उसे सत्ता से बेदखलकर समाजवादी लोकतंत्र को स्थापित करना आवश्यक है।

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लोकतांत्रिक सरकार क्या है?

लोकतंत्र (शाब्दिक अर्थ “लोगों का शासन”, संस्कृत लोक, “जनता” ,तंत्र ,”शासन”, ) एक ऐसी शासन व्यवस्था है जिसमें जनता अपना शासक खुद चुनती है । लोकतांत्रिक सरकार का तात्पर्य है कि ऐसी सरकार जिसे जनता द्वारा, जनता के लिए और जनता के हित में चुना जाता है उसे ही लोकतांत्रिक सरकार कहते हैं।

लोकतंत्र के गुण

प्रजातंत्र को सर्वश्रेष्ठ कोटि  ने जॉन स्टूअर्ट मिल का शासन बताया है। अपने सुप्रसिद्ध ग्रंथ representative government रिप्रेजेंटेटिव कॉमेंट में मिलने लोकतंत्र के समर्थन पर को प्रस्तुत किया कि किसी भी सरकार में  गुण दोषों का मूल्यांकन करने के लिए दो मापदंडों की आवश्यकता होती है । उसकी पहले कसोटी यह है कि क्या सरकार का शासन उत्तम है अथवा नहीं उसकी दूसरी कसौटी यह है कि उसके शासन का प्रजा के चरित्र निर्माण पर अच्छा अथवा बुरा प्रभाव पड़ता है।

लोकतंत्र के गुण निम्नलिखित है:

  • उच्च आदर्शों पर आधारित
  • जनकल्याण पर आधारित
  • सार्वजनिक शिक्षण
  • क्रांति से सुरक्षा
  • परिवर्तनशील शासन व्यवस्था
  • देश प्रेम की भावना का विकास
  • चंदा में अपना विश्वास एवं उत्तरदायित्व की भावना का विकास

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लोकतंत्र के दोष

Democracy अर्थात लोकतंत्र के दोष निम्नलिखित है:

  • लोकतंत्र अयोग्य लोगों का शासन है
  • बहुमत  द्वारा निर्णय युक्तिसंगत नहीं
  • प्रजातंत्र गुणों पर नहीं बल्कि संख्या पर बल देता है
  • पेशेवर राजनीतिक लोग का बहुमूल्य
  • खर्चीला शासन
  • संकट काल के लिए अनुपयुक्त
  • उग्र दलबंदी

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लोकतंत्र का महत्व (Loktantra ka mahatva)

लोकतंत्र का महत्व (Loktantra ka mahatva)

लोकतंत्रात्मक शासन अनेक प्रकार की आलोचना और दोषों के होते हुए लोकतंत्र का अपना एक अलग ही महत्व है।

  • लोगों की जरूरत के अनुरूप आचरण करने के मामले में लोकतांत्रिक शासन प्रणाली किसी अन्य शासन प्रणाली से बहुत ही बेहतर है।
  • लोकतांत्रिक शासन पद्धति बाकी सभी पद्धति से बेहतर है क्योंकि यह आशंका अधिक जवाबदेही वाला स्वरूप होता है।
  • बेहतर निर्णय देने की संभावना बढ़ाने के लिए लोकतंत्र अलग ही भूमिका निभाता है।
  • लोकतंत्र मतभेदों और टकराव को संभलने का तरीका अलग ही तरीके से उपलब्ध कराता है।
  • लोकतंत्र जनता एवं नागरिकों का सम्मान बढ़ाता है।
  • लोकतांत्रिक व्यवस्था दूसरों से बेहतर है क्योंकि इसमें हमें अपनी गलती ठीक करने का अवसर भी दिया जाता है।

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लोकतंत्र की सफलता के लिए आवश्यक शर्तें

  • प्रजातंत्र की सफलता में सबसे महत्वपूर्ण बाधा अशिक्षा की है ,इसका यह अर्थ है कि प्रजातंत्र की सफलता के लिए आवश्यक है कि नागरिक को शिक्षित होना चाहिए  जागृत करना और राजनीतिक जीवन में रुचि रखने वाला हो।
  • प्रजातंत्र का आर्थिक रूप से यह भी कार्य होता है कि देश में शांति और सुव्यवस्था का वातावरण बनाए रखें।
  • लोकतंत्र की सफलता के लिए आर्थिक समानता और सामाजिक न्याय की स्थापना करना भी बहुत ही आवश्यक है ।जनता की न्यूनतम आवश्यकताएं पूरी करनी चाहिए ताकि वह भी बिना किसी दबाव के शासन के कार्यों में भाग ले सकें।
  • निर्वाचन समय बंद एवं निष्पक्ष होना यह लोकतंत्र की सफलता के लिए बहुत ही आवश्यक है।
  • सामाजिक स्तर पर विशेष अधिकारों की संपत्ति होना बहुत ही आवश्यक है लोकतंत्र की सफलता के लिए।
  • प्रजातंत्र की रक्षा एवं सफलता संरक्षण हेतु के निष्पक्ष न्यायपालिका होनी बहुत आवश्यक है लोकतंत्र की सफलता के लिए अहम भूमिका निभाता है।
  • जनमत निर्माण के साधन जैसे समाचार पत्र ,पत्रिकाएं सभा संगठन ऐसी कई सारे प्रकार पर किसी वर्ग विशेष का अधिकार ना हो, प्रकाश स्वतंत्र और ईमानदार प्रेम के माध्यम से जनता और शासन के बीच स्वस्थ संबंध कायम बनाए रखना लोकतंत्र की सफलता के लिए यह भी बहुत ही आवश्यक है।
  • स्थानीय स्वशासन का विकास और प्राथमिक पाठशाला होनी अभी बहुत ही आवश्यक है।
  • प्रजातंत्र के कट्टर आलोचक लेकर तथा हेंडरी मैंने बहुत के शासन को सीमा के भीतर रखने के लिए लिखित संविधान का सुझाव भी दिया था जो लोकतंत्र में अहम भूमिका निभाते हैं।
  • प्रभावशाली विरोधी कादल और शक्तिशाली अभाव में लोकतंत्र सरकार निर्गुण और लापरवाह हो जाती है साथ ही सत्ता का दुरुपयोग करने लगती है यह भी लोकतंत्र का सफलता के लिए बहुत ही आवश्यक है।

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लोकतंत्र क्या है?: FAQs

कौन सा देश लोकतांत्रिक देश नहीं है?

घाना, म्यांमार और वेटिकन सिटी किसी न किसी रूप में लोकतंत्र की परिधि से बाहर के देश हैं। इसके अलावा सऊदी अरब, जार्डन, मोरक्को, भूटान, ब्रूनेई, कुवैत, यूएई, बहरीन, ओमान, कतर, स्वाजीलैंड आदि देशों में राजतंत्र है।

लोकतंत्र कितने प्रकार के होते हैं?

सामान्यत: लोकतंत्र-शासन-व्यवस्था दो प्रकार की मानी जानी है :
(1) विशुद्ध या प्रत्यक्ष लोकतंत्र तथा
(2) प्रतिनिधि सत्तात्मक या अप्रत्यक्ष लोकतंत्र

लोकतंत्र के मुख्य सिद्धांत क्या है?

लोकतंत्र का अर्थ है जनता द्वारा , जनता के हित मे , जनता पर शासन। अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता , मतदान का अधिकार , स्वतंत्र मीडिया, निष्पक्ष न्यायलय लोकतंत्र के प्रमुख सिद्धांत है।

लोकतांत्रिक पद्धति अपनाने वाला प्रथम राज्य देश कौन सा है?

ग्रीस, दुनिया का पहला लोकतांत्रिक देश है।

लोकतंत्र का कौन सा गुण सही नहीं है?

व्यावहारिक सामाजिक समानता का अभावः – जिन देशो में लोकतंत्र की स्थापना हुई, उनमें अधिकांश रूप से यह देखने को मिलता है कि व्यावहारिक रूप से सामाजिक समानता कायम नहीं रहती है। ऊंच – नीच, गरीबी – अमीरी, वर्ग – संघर्ष, तरीके और आर्थिक असमानताओं के कारण सामाजिक समानता कभी स्थापित नहीं होती है।

लोकतंत्र के तीन मूल कौन कौन से हैं?

लोकतंत्र में लोक का अर्थ जनता और तंत्र का अर्थ व्यवस्था होता है. अत: लोकतंत्र का अर्थ हुआ जनता का राज्य. यह एक ऐसी जीवन पद्धति है जिसमें स्वतंत्रता, समता और बंधुता समाज-जीवन के मूल सिद्धांत होते हैं. अंग्रेजी में लोकतंत्र शब्द को डेमोक्रेसी (Democracy) कहते है जिसकी उत्पत्ति ग्रीक मूल शब्द ‘डेमोस’ से हुई है.

लोकतंत्र में चुने हुए प्रतिनिधि कौन होते हैं?

लोकतंत्र में चुने हुए प्रतिनिधि विधायक और सांसद होते हैं जिन्हें हम वोट देकर अपना जनप्रतिनिधि बनाते हैं।

विश्व के कितने देशों में लोकतंत्र है?

दुनिया के 56 देशों में है लोकतांत्रिक प्रणाली ञ्च भारत, अमेरिका, फ्रांस, जर्मनी, ब्राजील, ऑस्ट्रेलिया समेत केवल 56 देशों में लोकतांत्रिक प्रक्रिया का पालन किया जाता है।

क्या सऊदी अरब एक लोकतांत्रिक देश है?

सउदी अरब मध्यपूर्व में स्थित एक सुन्नी मुस्लिम देश है। यह एक इस्लामी राजतंत्र है जिसकी स्थापना १७५० के आसपास सउद द्वारा की गई थी। … यह विश्व के अग्रणी तेल निर्यातक देशों में गिना जाता है।

विश्व में सबसे बड़ा लोकतांत्रिक देश कौन है?

दुनिया में भारत को सबसे बड़ा लोकतांत्रिक देश माना जाता है। 26 जनवरी, 1950 को भारत का संविधान लागू हुआ था। इसे विश्व का सबसे लंबा लिखित संविधान मानते हैं। भारत को इसलिए दुनिया का सबसे बड़ा लोकतंत्र माना जाता है, क्योंकि यहां 29 भाषाएं और करीब 1650 बोलियां बोली जाती हैं।

मुख्य रूप से लोकतंत्र कितने प्रकार के होते हैं?

लोकतंत्र के मुख्य रूप से दो प्रकार माने जाते हैं-
(1) विशुद्ध या प्रत्यक्ष लोकतंत्र
(2) प्रतिनिधि सत्तात्मक या अप्रत्यक्ष लोकतंत्र

सरकार के दो रूप कौन-कौन से हैं?

सरकार के दो रूप हैं- (1) लोकतांत्रिक (2) गैर लोकतांत्रिक।

सरकार का सबसे प्रचलित रूप कौन सा है?

लोकतंत्र

भारतीय प्रजातंत्र के जनक कौन है?

डॉ. भीमराव अंबेडकर

प्रत्यक्ष लोकतंत्र किसे कहते हैं?

प्रत्यक्ष लोकतंत्र से तात्पर्य है कि जिसमें देश के सभी नागरिक प्रत्यक्ष रूप से राज्य कार्य में भाग लेते हैं। इस प्रकार उनके विचार विमर्श से ही कोई फैसला लिया जाता है ‌। प्रसिद्ध दार्शनिक रूसो ने ऐस लोकतंत्र को ही आदर्श व्यवस्था माना है।

अंतरराष्ट्रीय लोकतंत्र दिवस कब मनाया जाता है?

15 सितंबर

अरस्तु ने लोकतंत्र को कौनसी प्रणाली बताई है?

अरस्तू ने लोकतंत्र एक विकृत शासन प्रणाली बताया था ,जिसमें बहू संख्या निर्धन वर्ग अपने वर्ग के हित के लिए शासन पर आता है और भीडतंत्र का रूप धारण कर लेता है और साथ ही अरस्तू के लोकतंत्र को पालिटी polity के नाम से जाना जाता है।

यूनानी दार्शनिक वलीआन के अनुसार लोकतंत्र की क्या परिभाषा है?

यूनानी दार्शनिक वलीआन के अनुसार ने लोकतंत्र की यह परिभाषा दी है कि, “लोकतंत्र वह होगा जो जनता का, जनता के द्वारा हो, जनता के लिए हो।”

अंतिम शब्द

तो दोस्तों आज हमने लोकतंत्र के बारे में विस्तार से जाना है और मैं आशा करता हु की आप सभी को आज का यह आर्टिकल जरुर से पसंद आया होगा और आप के लिए हेल्पफुल भी होगा.

यदि फिर भी आप के मन में “लोकतंत्र क्या है?” से सम्बंधित कोई प्रश्न है तो आप निचे दिए कमेंट बॉक्स में पुच सकते है, हमे आप के सवालों के जवाब देने में बेहद ख़ुशी होगी.

आर्टिकल को पूरा पढने के लिए आप सभी का बहुत-बहुत धन्यवाद.

सुधांशु कोडमास्टर के संस्थापक हैं। वह पेशे से एक वेब डिज़ाइनर हैं और साथ ही एक उत्साही ब्लॉगर भी हैं जो हमेशा ही आपको सरल शब्दों में बेहतर जानकारी प्रदान करने के प्रयास में रहते हैं।

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