वेद क्या है और वेद कितने प्रकार के होते हैं? | सम्पूर्ण जानकारी हिंदी में

वेद क्या है? – नमस्कार दोस्तों कैसे है आप सभी? मैं आशा करता हु की आप सभी अच्छे ही होंगे. तो दोस्तों आज के इस पोस्ट में हम वेद (Veda) के बारे में विस्तार से जानेंगे.

दोस्तों आज के इस आर्टिकल में हम वेद क्या है (Ved Kya Hai), वेद कितने प्रकार के होते हैं (Ved Kitne Prakar Ke Hote Hain), वेद का लेखक कौन है, वेद का दूसरा नाम क्या है, सबसे पुराना वेद कौन सा है, Ved In Hindi, वेद का अर्थ, चार वेद किसने लिखे, आदि के साथ वेद (Veda) के बारे में और भी बहुत सारी बातो के बारे में जानेंगे.

तो चलिए शुरू करते है…


यह भी पढ़े: संसाधन संरक्षण क्या है?


वेद क्या है? | Ved In Hindi

वेद क्या है
वेद क्या है?

Ved Kya Hai? – वेद शब्द की उत्पति संस्कृत भाषा की विद् धातु से हुई है। विद् का तात्पर्य होता है जानना अर्थात ज्ञान। वेद हिंदू धर्म के प्राचीन पवित्र ग्रंथ माने जाते हैं। मान्यतानुसार प्राचीन समय में भगवान ने ऋषियों को अप्रत्यक्ष रूप से वेद मंत्र सुनाये थे। इसी कारण वेदों को श्रुति भी कहा गया है।

वेद भारतीय संस्कृति के वे ग्रन्थ हैं, जिनमे ज्योतिष, गणित, विज्ञान, धर्म, ओषधि, प्रकृति, खगोल शास्त्र आदि लगभग सभी विषयों से सम्बंधित ज्ञान का भंडार भरा पड़ा है। वेद हमारी भारतीय संस्कृति की रीढ़ हैं। इनमे अनिष्ट से सम्बंधित उपाय तथा जो इच्छा हो उसके अनुसार उसे प्राप्त करने के उपाय संग्रहीत हैं। लेकिन जिस प्रकार किसी भी कार्य में महनत लगती है, उसी प्रकार इन रत्न रूपी वेदों का श्रमपूर्वक अध्यन करके ही इनमे संकलित ज्ञान को मनुष्य प्राप्त कर सकता है।

वैदिक युग में समाधी में लीन सत्परुषों को विश्व के आध्यात्मिक उत्थान (भलाई) के लिये परमात्मा ने महाज्ञान प्रदान किया। क्योंकि उन्होंने भगवान द्वारा प्रदत यह ज्ञान सुना इसलिये इसे श्रुति भी कहते हैं।

वेदों को अनन्त भी कहा गया है:- श्रुति भगवति बतलाती हैं ‘अनन्ता वै वेदा:’ अर्थात जो अनंत हैं वही वेद हैं। वेद का अर्थ है ज्ञान और ज्ञान की कोई सीमा नहीं होती वह अनंत होता है इसलिये वेद भी अनंत हैं।

वेद धर्म का मूल है, वेद सर्वज्ञानमय है । इस जगत, इस जीवन एवं परमपिता परमेश्वर; इन सभी का वास्तविक ज्ञान “वेद” है।

पितृदेव मनुष्याणां वेदश्चक्षु: सनातनम।
अशक्यच्च प्रमेयच्च वेदशास्त्रमिति स्थितिः ।। 

‘वेद’ मनुष्यों का शाश्वत यक्षु है – जो शुभ और अशुभ का ज्ञान कराता है।
वेद संसार के सभी रहस्यों की कुंजी है।


यह भी पढ़े: धारा 302 क्या है?


वेद का अर्थ क्या है? | Meaning Of Veda In Hindi

दरअसल ‘वेद’ शब्‍द की उत्‍पत्‍ति संस्‍कृत भाषा के ‘विद्’ धातु से हुई है. इस प्रकार वेद का शाब्‍दिक अर्थ है ‘ज्ञान के ग्रंथ’. इसी ‘विद्’ धातु से ‘विद्वान’ (ज्ञानी), ‘विद्या’ (ज्ञान) और ‘विदित’ (जाना हुआ) शब्‍द की उत्‍पत्‍ति भी हुई है. कुल मिलाकर ‘वेद’ का अर्थ है ‘जानने योग्‍य ज्ञान के ग्रंथ’.


वेद कितने प्रकार के होते हैं? | Types Of Veda In Hindi

Ved Kitne Prakar Ke Hote Hain? – मान्यता है कि आरंभ में वेद एक ही थे हालांकि कई धार्मिक ग्रंथों में इनकी संख्या आरंभ से ही चार मानी गई है।

  • ऋग्वेद
  • यजुर्वेद
  • सामवेद
  • अथर्ववेद

1. ऋग्वेद

ऋग्वेद को चारों वेदों में सबसे प्राचीन माना जाता है। इसको दो प्रकार से बाँटा गया है। प्रथम प्रकार में इसे 10 मण्डलों में विभाजित किया गया है। मण्डलों को सूक्तों में, सूक्त में कुछ ऋचाएं होती हैं। कुल ऋचाएं 10627 हैं। दूसरे प्रकार से ऋग्वेद में 64 अध्याय हैं। आठ-आठ अध्यायों को मिलाकर एक अष्टक बनाया गया है। ऐसे कुल आठ अष्टक हैं। फिर प्रत्येक अध्याय को वर्गों में विभाजित किया गया है। वर्गों की संख्या भिन्न-भिन्न अध्यायों में भिन्न भिन्न ही है। कुल वर्ग संख्या 2024 है। प्रत्येक वर्ग में कुछ मंत्र होते हैं। सृष्टि के अनेक रहस्यों का इनमें उद्घाटन किया गया है। पहले इसकी 21 शाखाएं थीं परन्तु वर्तमान में इसकी शाकल शाखा का ही प्रचार है।

2. यजुर्वेद

इसमें गद्य और पद्य दोनों ही हैं। इसमें यज्ञ कर्म की प्रधानता है। प्राचीन काल में इसकी 101 शाखाएं थीं परन्तु वर्तमान में केवल पांच शाखाएं हैं – काठक, कपिष्ठल, मैत्रायणी, तैत्तिरीय, वाजसनेयी। इस वेद के दो भेद हैं – कृष्ण यजुर्वेद और शुक्ल यजुर्वेद। कृष्ण यजुर्वेद का संकलन महर्षि वेद व्यास ने किया है। इसका दूसरा नाम तैत्तिरीय संहिता भी है। इसमें मंत्र और ब्राह्मण भाग मिश्रित हैं। शुक्ल यजुर्वेद – इसे सूर्य ने याज्ञवल्क्य को उपदेश के रूप में दिया था। इसमें 15 शाखाएं थीं परन्तु वर्तमान में माध्यन्दिन को जिसे वाजसनेयी भी कहते हैं प्राप्त हैं। इसमें 40 अध्याय, 303 अनुवाक एवं 1975 मंत्र हैं। अन्तिम चालीसवां अध्याय ईशावास्योपनिषद है।

3. सामवेद

यह गेय ग्रन्थ है। इसमें गान विद्या का भण्डार है, यह भारतीय संगीत का मूल है। ऋचाओं के गायन को ही साम कहते हैं। इसकी 1001 शाखाएं थीं। परन्तु आजकल तीन ही प्रचलित हैं – कोथुमीय, जैमिनीय और राणायनीय। इसको पूर्वार्चिक और उत्तरार्चिक में बांटा गया है। पूर्वार्चिक में चार काण्ड हैं – आग्नेय काण्ड, ऐन्द्र काण्ड, पवमान काण्ड और आरण्य काण्ड। चारों काण्डों में कुल 640 मंत्र हैं। फिर महानाम्न्यार्चिक के 10 मंत्र हैं। इस प्रकार पूर्वार्चिक में कुल 650 मंत्र हैं। छः प्रपाठक हैं। उत्तरार्चिक को 21 अध्यायों में बांटा गया। नौ प्रपाठक हैं। इसमें कुल 1225 मंत्र हैं। इस प्रकार सामवेद में कुल 1875 मंत्र हैं। इसमें अधिकतर मंत्र ऋग्वेद से लिए गए हैं। इसे उपासना का प्रवर्तक भी कहा जा सकता है।

4. अथर्ववेद

इसमें गणित, विज्ञान, आयुर्वेद, समाज शास्त्र, कृषि विज्ञान, आदि अनेक विषय वर्णित हैं। कुछ लोग इसमें मंत्र-तंत्र भी खोजते हैं। यह वेद जहां ब्रह्म ज्ञान का उपदेश करता है, वहीं मोक्ष का उपाय भी बताता है। इसे ब्रह्म वेद भी कहते हैं। इसमें मुख्य रूप में अथर्वण और आंगिरस ऋषियों के मंत्र होने के कारण अथर्व आंगिरस भी कहते हैं। यह 20 काण्डों में विभक्त है। प्रत्येक काण्ड में कई-कई सूत्र हैं और सूत्रों में मंत्र हैं। इस वेद में कुल 5977 मंत्र हैं। इसकी आजकल दो शाखाएं शौणिक एवं पिप्पलाद ही उपलब्ध हैं। अथर्ववेद का विद्वान् चारों वेदों का ज्ञाता होता है। यज्ञ में ऋग्वेद का होता देवों का आह्नान करता है, सामवेद का उद्गाता सामगान करता है, यजुर्वेद का अध्वर्यु देव:कोटीकर्म का वितान करता है तथा अथर्ववेद का ब्रह्म पूरे यज्ञ कर्म पर नियंत्रण रखता है।


यह भी पढ़े: साइनोबैक्टीरिया क्या है?


वेद का लेखक कौन है? | Who Is The Author Of Veda?

क्या आप जानते है की वेद के रचयिता कौन हैं? चलिए जानते है:

वेदों को अपौरुषेय भी कहा जाता है. ‘अपौरुषेय’ का अर्थ यह हुआ कि वो कार्य जिसे कोई व्‍यक्‍ति ना कर सकता हो, यानी ईश्‍वर द्वारा किया हुआ. अत: परब्रह्म को ही वेदों का रचयिता माना जाता है.

कई लोग का मानना है कि वेदव्यास जी ने वेद लिखा है. परन्तु यह ध्यान रहे कि वेदव्यास जी ने वेदों को लिपिबद्ध किया था. अर्थात् वेद तो अनादि है जो वेदव्यास जी के अवतार लेने के पहले भी थे. वेद तो भगवान के श्रीमुख से प्रकट हुए थे. भगवान से मनुष्यों तक वेद सुनते हुए आए (गुरु शिष्य परंपरा अनुसार) इसलिए वेद को श्रुति भी कहते हैं, ‘श्रुति’ अर्थात् सुना हुआ.


यह भी पढ़े: पारितंत्र क्या है?


वेदों का इतिहास क्या है?

वेद मानव सभ्यता के लगभग सबसे पुराने लिखित दस्तावेज हैं. वेदों की 28 हजार पांडुलिपियाँ भारत में पुणे के ‘भंडारकर ओरिएंटल रिसर्च इंस्टीट्यूट’ में रखी हुई हैं. इनमें से ऋग्वेद की 30 पांडुलिपियाँ बहुत ही महत्वपूर्ण हैं जिन्हें यूनेस्को ने विरासत सूची में शामिल किया है. यूनेस्को ने ऋग्वेद की 1800 से 1500 ई.पू. की 30 पांडुलिपियों को सांस्कृतिक धरोहरों की सूची में शामिल किया है. उल्लेखनीय है कि यूनेस्को की 158 सूची में भारत की महत्वपूर्ण पांडुलिपियों की सूची 38 है.


यह भी पढ़े: सरोगेसी क्या है?


वेदों का विस्तार कैसे हुआ?

वेद गुरु शिष्य परंपरा के तहत आगे बढ़ें हैं। परमात्मा ने आरंभ में जिन महात्माओं को यह महाज्ञान संसार के कल्याण के लिये प्रदान किया उन्होंने अपने शिष्यों को और फिर पीढ़ी दर पीढ़ी यह ज्ञान आगे फैलता रहा।  परमात्मा ने आदि चार ऋषियों अग्नि, वायु, आदित्य और अंगिरा को
एक-एक वेद का, क्रमशः ऋग्वेद, यजुर्वेद, सामवेद तथा अथर्ववेद का, ज्ञान दिया था। यह ज्ञान सर्वव्यापक एवं सर्वान्तर्यामी परमात्मा ने ऋषियों की आत्मा में उन्हें प्रेरणा करके स्थापित वा प्रदान किया था।

  • इस प्रकार वेद शिक्षा की परंपरा चार-पांच हजार वर्षों से चलन में होने की मान्यता है। मान्यतानुसार आरंभिक अवस्था में वेद एक ही था जिसमें अनेक ऋचाएं थी। इन्हें वेद-सूत्र कहा जाता था।
  • सतयुग और त्रेता तक वेद एक ही माना जाता है.
  • लेकिन द्वापरयुग में महर्षि कृष्णद्वैपायन ने वेदों को चार भागों(संस्कृत में विभाग को व्यास भी कहा जाता है) में विभाजित किया।
  • वेदों का व्यास करने के कारण ही कृष्णद्वैपायन वेदव्यास कहलाये।
    • पैल, वैशम्पायन, जैमिनी और सुमन्तु वेदव्यास के शिष्य थे।
    • पैल को ऋग्वेद तो वैशम्पायन को यजुर्वेद का ज्ञान दिया। जैमिनी को सामवेद तो सुमन्तु को अथर्ववेद की शिक्षा दी।

यह भी पढ़े: जल संभर प्रबंधन क्या है?


वेदों का महत्व क्या है?

प्राचीन काल से भारत में वेदों के अध्ययन और व्याख्या की परम्परा रही है. वैदिक सनातन वर्णाश्रम (हिन्दू) धर्म के अनुसार वैदिक काल में ब्रह्मा से लेकर वेदव्यास तथा जैमिनि तक के ऋषि-मुनियों और दार्शनिकों ने शब्द, प्रमाण के रूप में इन्हीं को माना है और इनके आधार पर अपने ग्रन्थों का निर्माण भी किया है. पराशर, कात्यायन, याज्ञवल्क्य, व्यास, पाणिनी आदि को प्राचीन काल के वेदवेत्ता कहते हैं.

वेदों के विदित होने यानि चार ऋषियों के ध्यान में आने के बाद इनकी व्याख्या करने की परम्परा रही है. अतः फलस्वरूप एक ही वेद का स्वरुप भी मन्त्र, ब्राह्मण, आरण्यक, उपनिषद् के रुप में चार ही माना गया है. इतिहास (महाभारत), पुराण आदि महान् ग्रन्थ वेदों का व्याख्यान के स्वरूप में रचे गए.

प्राचीन काल और मध्ययुग में शास्त्रार्थ इसी व्याख्या और अर्थांतर के कारण हुए हैं. मुख्य विषय – देव, अग्नि, रूद्र, विष्णु, मरुत, सरस्वती इत्यादि जैसे शब्दों को लेकर हुए. वेदवेत्ता महर्षि स्वामी दयानन्द सरस्वती के विचार में ज्ञान, कर्म, उपासना और विज्ञान वेदों के विषय हैं. जीव, ईश्वर, प्रकृति इन तीन अनादि नित्य सत्ताओं का निज स्वरूप का ज्ञान केवल वेद से ही उपलब्ध होता है. वेद में मूर्ति पूजा को अमान्य कहा गया है.

कणाद ने “तद्वचनादाम्नायस्य प्राणाण्यम्” और “बुद्धिपूर्वा वाक्यकृतिर्वेदे” कहकर वेद को दर्शन और विज्ञान का भी स्रोत माना है. हिन्दू धर्म अनुसार सबसे प्राचीन नियम विधाता महर्षि मनु ने कहा वेदोऽखिलो धर्ममूलम् – खिलरहित वेद अर्थात् समग्र संहिता, ब्राह्मण, आरण्यक और उपनिषद के रूप में वेद ही धर्म व धर्मशास्त्र का मूल आधार है. न केवल धार्मिक किन्तु ऐतिहासिक दृष्टि से भी वेदों का असाधारण महत्त्व है.

वैदिक युग के आर्यों की संस्कृति और सभ्यता को जानने का वेद ही तो एकमात्र साधन है. मानव-जाति और विशेषतः वैदिकों ने अपने शैशव में धर्म और समाज का किस प्रकार विकास किया इसका ज्ञान केवल वेदों से मिलता है. विश्व के वाङ्मय में इनको प्राचीनतम ग्रन्थ (पुस्तक) माना जाता है. भारतीय भाषाओं का मूलस्वरूप निर्धारित करने में वैदिक भाषा अत्यधिक सहायक सिद्ध हुई है.


यह भी पढ़े: जीडीपी क्या है?


वेद व वेदों के उपांग

वेद में लगभग एक लाख मंत्र माने जाते हैं। जिनमें 4 हजार ज्ञान कांड, 16 हजार उपासना विधि, 80 हजार कर्मकांड विषय के हैं। मंत्रों की व्याख्या जिससे होती है उसे ब्राह्मण कहते हैं।

  • प्रत्येक वेद का ब्राह्मण ग्रंथ है।
    • ऋग्वेद का ब्राह्मण ग्रंथ है ऐतरेय
    • यजुर्वेद का ब्राह्मण ग्रंथ है शतपथ
    • सामवेद का ब्राह्मण ग्रंथ है पंचविंश
    • अथर्ववेद का ब्राह्मण ग्रंथ है गोपथ।
  • इसी प्रकार हर वेद का एक उपवेद भी है।
    • ऋग्वेद का आयुर्वेद
    • यजुर्वेद का धनुर्वेद, 
    • सामवेद का गंधर्ववेद
    • अथर्ववेद का अर्थशास्त्र।

वेद के अंग:-

शिक्षा, कल्प, व्याकरण, निरुक्त, छंद, एवं ज्योतिष यह छह शास्त्र वेद के अंग माने जाते हैं।

वेदों के उपांग को षड्दर्शन या षड्शास्त्र भी कहा जाता है। वेद के छह अंगों में से एक है ज्योतिषशास्त्र। ज्योतिष के माध्यम से आप अपने जीवन की उलझी गुत्थियों को सुलझा सकते हैं, मार्गदर्शन पा सकते हैं।


यह भी पढ़े: NRC क्या है?


वेद की जरूरत क्यों है?

वेद को हमारी नहीं हमें और हमारे जीवन को वेद रुपी प्रकाश की जरुरत है।

प्राचीन काल से महाभारत काल के 1.96 अरब वर्षों तक वेदाध्ययन कर देश में ऋषि-मुनि-मनीषि-योगी एवं वेदों के मर्मज्ञ विद्वान उत्पन्न होते रहें।


वेद को अतीत में किन महापुरुषों ने अध्ययन किया?

वेदों की शिक्षा को आत्मसात कर अतीत में अनेक आदर्श महापुरुष एवं ऋषि आदि उत्पन्न हुए महापुरुषों में मर्यादा पुरुषोत्तम श्री राम एवं योगेश्वर श्री कृष्ण का अग्रणीय हैं। हमें लगता है कि राम तथा कृष्ण का जो आदर्श जीवन था, उसके समान विश्व में विगत पांच हजार वर्ष में कोई महापुरुष उत्पन्न नहीं हुआ।

स्वामी श्रद्धानन्द सरस्वती, पं0 लेखराम, पं0 गुरुदत्त विद्यार्थी, महात्मा हंसराज, स्वामी दर्शनानन्द सरस्वती, आचार्य पं0 चमूपति, पं0 गणपति शर्मा आदि महापुरुषों का भी जीवन
महापुरुषों के समान आदर्श जीवन था। 

इन्होंने मानवता का अत्यन्त उपकार किया है। श्री राम, श्री कृष्ण एवं ऋषि दयानन्द सहित वेद एवं ऋषियों के दर्शन, उपनिषद, मनुस्मृति एवं अन्य प्रामाणिक ग्रन्थों के कारण ही वर्तमान में वैदिक धर्म एवं संस्कृति जीवित है।

लेकिन आज की युवा संस्कृति से दूर होती जा रही है। स्वार्थ में कुछ इतना डूब गए है की उन्हें होश ही नहीं है उनके ऊपर एक दायत्व है। संस्कृति जो मानव के जीवन को जीने का ढंग सिखाती है उसे आने वाली पीढ़ियों के संजोना है।

आज लोगों में सत्य को ग्रहण करने और असत्य का त्याग करने की प्रवृत्ति व गुण नहीं है। लोग आध्यात्म से दूर चले गये हैं जिसका कारण भौतिकवाद तथा सुख के साधनों में प्रवृत्ति तथा कुछ लोगों के राजनैतिक स्वार्थ हैं। वर्तमान में आर्यसमाज का प्रचार भी शिथिल पड़ चुका है जिसके अनेक कारण हैं। ऐसी स्थिति में ‘कृण्वन्तो विश्वमार्य’ अर्थात् विश्व को सत्यज्ञान वेद से युक्त श्रेष्ठ गुण-कर्म-स्वभाव वाला मनुष्य बनाने का कार्य बाधित हुआ है। भविष्य में वेदों का जन-जन में प्रचार हो सकेगा, यह मुश्किल लगता है?


यह भी पढ़े: Vitamin U क्या है?


वेद का सार-वेद क्यों पढ़्ना चाहिए?

वेद में एक ही ईश्वर की उपासना का विधान है और एक ही धर्म – ‘मानव धर्म’ का सन्देश है । वेद मनुष्यों को मानवता, समानता, मित्रता, उदारता, प्रेम, परस्पर-सौहार्द, अहिंसा, सत्य, संतोष, अस्तेय(चोरी ना करना), अपरिग्रह, ब्रह्मचर्य, आचार-विचार-व्यवहार में पवित्रता, खान-पान में शुद्धता और जीवन में तप-त्याग-परिश्रम की व्यापकता का उपदेश देता है।


वेद में कुल मंत्र

वेद में कुल मिलाकर एक लाख मंत्र हैं, जिसमें 80,000 कर्मकांड हैं, 16000 भक्तिकांड है और 4000 ज्ञानकांड की ऋचाएं हैं.


यह भी पढ़े: रिफर्बिश्ड फोन क्या है?


वेद क्या है? – FAQs

वेद क्या है?

वेद भारतीय संस्कृति के वे ग्रन्थ हैं, जिनमे ज्योतिष, गणित, विज्ञान, धर्म, ओषधि, प्रकृति, खगोल शास्त्र आदि लगभग सभी विषयों से सम्बंधित ज्ञान का भंडार भरा पड़ा है। वेद हमारी भारतीय संस्कृति की रीढ़ हैं। इनमे अनिष्ट से सम्बंधित उपाय तथा जो इच्छा हो उसके अनुसार उसे प्राप्त करने के उपाय संग्रहीत हैं। लेकिन जिस प्रकार किसी भी कार्य में महनत लगती है, उसी प्रकार इन रत्न रूपी वेदों का श्रमपूर्वक अध्यन करके ही इनमे संकलित ज्ञान को मनुष्य प्राप्त कर सकता है।

वेद का लेखक कौन है?

वेदों को अपौरुषेय भी कहा जाता है. ‘अपौरुषेय’ का अर्थ यह हुआ कि वो कार्य जिसे कोई व्‍यक्‍ति ना कर सकता हो, यानी ईश्‍वर द्वारा किया हुआ. अत: परब्रह्म को ही वेदों का रचयिता माना जाता है.

वेद का दूसरा नाम क्या है?

वेदों को ‘श्रुति’ यानी ‘सुना हुआ’ भी कहते हैं। जबकि, अन्‍य हिन्‍दू ग्रंथों को ‘स्‍मृति’ कहते हैं, यानि मनुष्‍यों की बुद्धि या स्‍मृति पर आधारित ग्रंथ। वहीं वेद के सबसे प्राचीन भाग को ‘संहिता’ कहा जाता है। सुन और भली-भांति समझकर इसे एक पीढ़ी से दूसरी पीढ़ी तक पहुंचाने के कारण ही इन्‍हें ‘श्रुति’ कहा जाता है।

सबसे पुराना वेद कौन सा है?

ऋग्वेद सबसे पुराना वेद है। यह मनुष्य जाति की प्रथम पुस्तक है। इसमें 1028 सूक्त और 10580 ऋचाएँ हैं।

चार वेद किसने लिखे?

व्यास जी के द्वारा ऋक्, यजुः, साम और अथर्व- इन चार वेदों का उद्धार (पृथक्करण) हुआ। इतिहास और पुराणों को पाँचवाँ वेद कहा जाता है। उनमें से ऋग्वेद के पैल, सामगान के विद्वान् जैमिनि एवं यजुर्वेद के एकमात्र स्नातक वैशम्पायन हुए।

वेदत्रयी क्या है?

वेदत्रयी संज्ञा स्त्री॰ [सं॰] ऋक्, यजुः तथा साम ये तीनों वेद.

आयुर्वेद किसका उपवेद है?

आयुर्वेद को अथर्ववेद का उपवेद कहा जाता है।

अंतिम शब्द

तो दोस्तों आज हमने वेद (Veda) के बारे में विस्तार से जाना है और मैं आशा करता हु की आप सभी को आज का यह आर्टिकल जरुर से पसंद आया होगा और आप के लिए हेल्पफुल भी होगा.

यदि फिर भी आप के मन में “वेद क्या है?” से सम्बंधित कोई प्रश्न है तो आप निचे दिए कमेंट बॉक्स में पुच सकते है, हमे आप के सवालों के जवाब देने में बेहद ख़ुशी होगी.

आर्टिकल को पूरा पढने के लिए आप सभी का बहुत-बहुत धन्यवाद.

सुधांशु कोडमास्टर के संस्थापक हैं। वह पेशे से एक वेब डिज़ाइनर हैं और साथ ही एक उत्साही ब्लॉगर भी हैं जो हमेशा ही आपको सरल शब्दों में बेहतर जानकारी प्रदान करने के प्रयास में रहते हैं।

Sharing Is Caring:

Leave a Comment