नमस्कार दोस्तों कैसे है आप सभी? मैं आशा करता हु की आप सभी अच्छे ही होंगे. तो दोस्तों आज हम “साइनोबैक्टीरिया क्या है? | Cyanobacteria In Hindi” के बारे में जानेंगे.
आज के इस पोस्ट में हम साइनोबैक्टीरिया क्या है, सायनोबैक्टीरिया के उपयोग से लाभ, सायनोबैक्टीरिया के उत्पादन की विधि, उत्पादन में ध्यान रखने योग्य बातें, आदि के साथ और भी बहुत सारी बातो के बारे में विस्तार से जानेंगे.
तो चलिए शुरू करते है…
साइनोबैक्टीरिया क्या है? | Cyanobacteria In Hindi

Cyanobacteria Kya Hai – Cyanobacteria का हिंदी नाम नील हरित शैवाल (Blue Green Algae) है. सायनोबैक्टीरिया एक जीवाणु फायलम होता है, जो प्रकाश संश्लेषण से ऊर्जा उत्पादन करते हैं। यहां जीवाणु के नीले रंग के कारण इसका नाम सायनो (अर्थात नीला) से पड़ा है।
साइनोबैक्टीरिया (नील हरित शैवाल) एक प्रकार के एककोशिकीय जीवाणु हैं, जो सूर्य प्रकाश के संश्लेषण से अपने लिये ऊर्जा उत्पादन कर सकते हैं। प्रकाश संश्लेषण करने की योग्यता इन्हें वांछित रसायनों और प्रोटीन के उत्पादन के लिए जैव प्रौद्योगिकी के क्षेत्र में उत्कृष्ट प्रतिभागी बनाती है। इस प्रक्रिया को प्रारम्भ करने के लिए वैज्ञानिक प्रोत्साहकों का उपयोग करते हैं, जो उपयुक्त जीवों से डीएनए के भाग होते हैं, जिसमें साइनोबैक्टीरिया भी सम्मिलित है, जो प्रोटीन के वांछित उत्पादन को आदेशित करता है।
नील हरित काई वायुमंडलीय नाइट्रोजन यौगिकीकरण कर, धान के फसल को आंशिक मात्रा में की नाइट्रोजन पूर्ति करता है। यह जैविक खाद नत्रजनधारी रासायनिक उर्वरक का सस्ता व सुलभ विकल्प है जो धान के फसल को, न सिर्फ 25-30 किलो ग्राम नत्रजन प्रति हैक्टेयर की पूर्ति करता है, बल्कि उस धान के खेत में नील हरित काई के अवशेष से बने सेन्द्रीय खाद के द्वारा उसकी गुणवत्ता व उर्वरता कायम रखने में मददगार साबित होती है।
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साइनोबैक्टीरिया की विशेषताए एवं लक्षण
साइनोबैक्टीरिया (Cyanobacteria) की कुछ मुख्य विशेषताए एवं लक्षण निम्नलिखित है:
- कई स्वरूपों में पाए जाते हैं: छड़, गोले और तंतु।
- एरोबिक प्रकाश संश्लेषण (इलेक्ट्रॉन दाता के रूप में पानी का उपयोग करें और ऑक्सीजन जारी करें) करें। वे ऑटोट्रॉफ़िक हैं, क्योंकि प्रकाश संश्लेषण ऊर्जा प्राप्त करने का मुख्य तरीका है।
- वे केवल सूक्ष्मदर्शी की सहायता से देखे जा सकते हैं।
- उनके पास कोई परमाणु झिल्ली नहीं है।
- वे एककोशिकीय प्रारूप में, एककोशिकीय साइनोबैक्टिक कालोनियों में या फिलामेंट जैसे संगठन में पाए जा सकते हैं।
- अधिकांश (गैर-औपनिवेशिक) प्रजातियों में अलैंगिक प्रजनन होता है।
- लगभग 3 अरब साल पहले हमारे ग्रह पर साइनोबैक्टीरिया मौजूद है।
- पानी के स्वाद और गंध को बदल सकता है, जिससे वे अप्रिय हो सकते हैं।
- वे प्रारंभिक वातावरण के ऑक्सीजन उत्पादन के लिए बहुत जिम्मेदार थे।
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साइनोबैक्टीरिया का चित्र | Cyanobacteria Diagram
साइनोबैक्टीरिया के उपयोग से लाभ
नील हरित काई के उपयोग से लाभ निम्नलिखित है:
- साइनोबैक्टीरिया एक जैविक खाद है जिसे धान उत्पादक किसान अपने स्तर पर आसानी से तैयार कर सकते हैं।
- नील हरित काई सामान्य रूप से धान के फसल को करीब 25 से 30 किलो ग्राम प्रति हैक्टेयर नत्रजन की पूर्ति करता है।
- यह काई उपचार के पश्चात् प्रत्येक सीजन में अपने अवशेषों के द्वारा करीब 800 से 1200 किलो ग्राम तक सेन्द्रीय खाद प्रति हैक्टर की पूर्ति करता है जिसकी वजह से उसे खेत के मिट्टी की गुणवत्ता और उपजाऊ क्षमता कायम रहती है।
- नील हरित काई के द्वारा कुछ ऐसे रासायनिक पदार्थ स्त्रावित होता है जिससे बीजों का अंकुरण और फसलों में सामान रूप से वृद्धि होती है।
- लगातार 3-4 वर्षों तक यदि धान के उसी खेत में नील हरित काई का उपयोग किया जाये तो आने वाले कइ्र्र सीजन तक पुनः उपचार करने की आवश्यकता नहीं होता साथ में इस काई के उपयोग का लाभ आगामी उन्हारी फसल पर भी देखा गया है।
- जैविक खाद के रूप में नील हरित काई के उपयोग के फलस्वरूप अतिरिक्त उपज मिलने से करीब 400 से 500 रू. प्रति हैक्टर तक शुद्ध आमदनी होती है।
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साइनोबैक्टीरिया के उत्पादन की विधि
नील हरित काई के उत्पादन की विधि निम्नलिखित है:
इस जैव उर्वरक के उत्पादन लेने के पहले कुछ विशेष बातों पर ध्यान देना आवश्यक है जो निम्नलिखित है अन्यथा उत्पादन प्रभावित हो सकता है।
- छाया से दूर, खुला स्थान
- मातृ कल्चर
- सिंगल सुपरफास्फेट
- कीटनाशक दवाई जैसे मेलाथियान
- आवश्यकतानुसार चूना
- पास ही पानी का खेत
यद्यपि नील हरित काई का उत्पादन कई प्रकार से लिया जाता है, जैसे लोहे की ट्रे, पालीथीन चादरों से ढके कच्चे गड्ढों में, ईटों व सीमेंट से बने पक्के गड्ढों में किन्तु आर्थिक रूप से पिछड़े छोटे व सीमांत किसानों के लिये ये उपरोक्त सभी तरीके खर्चीले होते हैं।
ऐसे लोगों के लिये इंदिरा गांधी कृषि विश्वविद्यालय स्थित मृदा विज्ञान विभाग वैज्ञानिक द्वारा एक विशेष ग्रामीण उत्पादन तकनीक का विकास किया है जिसमें न ही पालीथीन चादरों की आवश्यकता होती है और न ही ईंट सीमेंट की।
यह ग्रामीण उत्पादन तकनीकी विधि, बनाने में, उत्पादन लेने में तथा उसके रख रखाव में अत्यंत सरल, सुलभ और सभी के आर्थिक स्थिति के मुताबिक है।
यहां के मौसम और जलवायु के अनुसार बताई गई उत्पादन विधि से इस कल्चर का उत्पादन फरवरी माह से जून के आखरी सप्ताह तक अच्छी तरह किया जा सकता है।
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उत्पादन में ध्यान रखने योग्य बातें
- पानी का स्रोत ज्यादा दूर न हो।
- गड्ढा कभी सुखने न पाये। हमेशा गड्ढा में कम से कम 10-15 से.मी. पानी बना रहना चाहिये।
- किसी भी गड्ढे से तीन बार उत्पादन लेने के पश्चात् पुनः रॉक फास्फेट का आधा भाग याने 100 ग्राम रॉक फास्फेट प्रति वर्ग मीटर के हिसाब से दुबारा डाले। इससे आशातीत उत्पादन लिया जा सकता है।
- किसी भी गड्डे में कीड़े दिखने की अवस्था में ऊपर बताये कोई भी कीटनाशक का अवश्य छिड़काव करें अन्यथा उत्पादन पर विपरीत प्रभाव पड़ता है।
- किसान अपने खेत में जो काई देखते हैं वह ‘नील हरित काई’ न होकर ‘हरी काई’ होता है। गहरे रंग की रेशेदार यह काई पानी के ऊपर ही फैलती है जो धान के पौधे के लिये नुकसानदायक होता है। इसे नष्ट कर देना ही हितकर होता है। इसे नष्ट करने का भी सुलभ सरल और कम लागत वाला तरीका ईजाद किया गया है। जहां भी हरी काई दिखें वहीं 1 ग्राम नीलाथोथा को 1 लीटर पानी में घोलकर छिड़क दें। इससे हरी काई 3-4 दिनों में नष्ट हो जाती है। चूँकि यह हरी काई कुछ दिनों बाद फिर से दिखने लग जाती है इसलिये नीलाथोथा का छिड़काव समयानुसार करते रहना चाहिए। ध्यान रहे किसी भी हालत में नीलाथोथा की मात्रा ज्यादा न हो अन्यथा यह धान फसल पर विपरीत प्रभाव डाल सकता है।
- नील हरित काई के उत्पादन के लिये कम से कम 30 सेल्सियस तापमान का होना आवश्यक होता है साथ ही खुला सूर्य का प्रकाश भी उस पर पड़ना चाहिये। 45 सें.ग्रे. से ऊपर के तापमान में इसका उत्पादन प्रभावित होता है इसीलिये बदली वाले खरीफ, ठंड के दिनों तथा छायायुक्त जगह में इसका उत्पादन नहीं होता।
- मिट्टी का स्वभाव भी उत्पादन को प्रभावित करता है। अम्लीय मिट्टी नील हरित काई के उत्पादन के लिये उपयुक्त नहीं पायी गई है। उदासीन अथवा थोड़ी क्षारीय भूमि में इस कल्चर की अच्छी वृद्धि होने की संभावना रहती है।
साइनोबैक्टीरिया क्या है?: FAQs
नील हरित शैवाल (अंग्रेज़ी:ब्लू-ग्रीन ऐल्गी, सायनोबैक्टीरिया) एक जीवाणु फायलम होता है, जो प्रकाश संश्लेषण से ऊर्जा उत्पादन करते हैं। यहां जीवाणु के नीले रंग के कारण इसका नाम सायनो (यूनानी:κυανός {काएनोस} अर्थात नीला) से पड़ा है।
सायनोबैक्टीरिया, जिसे साइनोफाइटा के रूप में भी जाना जाता है, एक फ़ाइलम है जो दोनों मुक्त-जीवित प्रकाश संश्लेषक बैक्टीरिया और एंडोसिम्बायोटिक प्लास्टिड्स से युक्त होते हैं जो आर्कियोप्लास्टीडा ऑटोट्रॉफ़िक इयररियोट्स में मौजूद होते हैं।
कुछ शैवाल जलाशयों में प्रदूषण को बढ़ाते हैं, जिससे जलाशयों का जल पीने योग्य नहीं रह जाता है। ये शैवाल एक प्रकार का विष का परित्याग करते हैं, जिस कारण जलाशयों की मछलियाँ मर जाती हैं, इन्हें ही हानिकारक शैवाल कहा जाता है.
यह जैविक खाद नत्रजनधारी रासायनिक उर्वरक का सस्ता व सुलभ विकल्प है जो धान के फसल को, न सिर्फ 25-30 किलो ग्राम नत्रजन प्रति हैक्टेयर की पूर्ति करता है, बल्कि उस धान के खेत में नील हरित काई के अवशेष से बने सेन्द्रीय खाद के द्वारा उसकी गुणवत्ता व उर्वरता कायम रखने में मददगार साबित होती है।
प्रोकैरियोटिक बैक्टीरिया तथा नील-हरित शैवाल या साइनोबैक्टीरिया को अन्य यूकैरियोटिक जीवों के साथ वर्गीकृत कर दिया गया। इस पद्धति के अनुसार एक कोशिक जीवों को बहुकोशिक जीवों के साथ वर्गीकृत किया गया, जैसे- क्लेमाइडोमोनास एवं स्पाइरोगायरा शैवाल।
हरे रंग की समुद्री वनस्पति जिसे समुद्री जीव खाते हैं। शैवाल को अंग्रेजी की भाषा में Algae कहा जाता है. यह एक सरल सजीव है. अधिकांश शैवाल प्रकाश की उपस्थिति में प्रकाश संश्लेषण की क्रिया से अपना भोजन खुद बनाते हैं इसीलिए उनको स्वपोषी भी कहा जाता है.
अंतिम शब्द
तो दोस्तों आज हमने साइनोबैक्टीरिया क्या है? | Cyanobacteria In Hindi के बारे में विस्तार से जाना है और मैं आशा करता हु की आप सभी को आज का यह पोस्ट जरुर से पसंद आया होगा और आप के लिए हेल्पफुल भी होगा.
यदि अभी भी आपके मन में साइनोबैक्टीरिया को लेकर कोई भी सवाल है तो निचे कमेंट कर के जरुर पूछे.
आर्टिकल को पूरा पढने के लिए आप सभी का बहुत-बहुत धन्यवाद.